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जीवनी/आत्मकथा >> बाल गंगाधर तिलक

बाल गंगाधर तिलक

एन जी जोग

प्रकाशक : प्रकाशन विभाग प्रकाशित वर्ष : 1969
पृष्ठ :150
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16196
आईएसबीएन :000000000

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आधुनिक भारत के निर्माता

अध्याय 13  काले पानी की सजा

यदि 1897 में पूना में हुई हत्याएं राजद्रोह के अभियोग में तिलक की पहली सजा का कारण थीं, तो 30 अप्रैल, 1902 को हुआ बंगाल का बम-काण्ड भी दो महीने बाद उनकी गिरफ्तारी का कारण बना। उस दिन मुजफ्फरपुर में खुदीराम बोस और प्रफुल्लचन्द्र चाकी ने जिला जज, किंग्सफोर्ड को मारने के उद्देश्य से बम फेंका। किंग्सफोर्ड राजनैतिक अपराधियों को भीषण दण्ड देने के कारण जनता में अत्यन्त अप्रिय हो गया था। उस बम से दो यूरोपीय महिलाओं की मृत्यु हुई। इस घटना से भय, आतंक और संत्रास का वातावरण पैदा हो गया, जिसकी प्रतिक्रिया सारे देश में चारों ओर देखने को मिली। सरकार ने आतंकवाद का उत्तर आतंक से देने का प्रयास किया और आंग्ल-भारतीय समाचारपत्र तो अपना बुद्धि-विवेक और सन्तुलन ही खो बैठे।

परिणामतः एक ही दिन, अर्थात् 8 जून, 1902 को दमन के लिए दो कानून बनाए गए। ये कानून थे एक्सप्लोसिव सब्सटैंसेज ऐक्ट और न्यूजपेपर (एक्साइटमेण्ट टु ऑफेंसेज) ऐक्ट, जिनके जाल में फांसकर किसी को भी कड़ा-से-कड़ा दण्ड दिया जा सकता था। केवल कोई बम-विस्फोट (जो भले ही न हो) करने का उद्देश्य रखने और प्रयत्न करने वाले के लिए 14 वर्ष तक की काले पानी की सजा मिल सकती थी। न्यूजपेपर ऐक्ट के अन्तर्गत जिलाधीश को अधिकार था कि वह हिंसा को प्रोत्साहित करने वाले प्रेस को जब्त कर ले या पत्र को बंद कर दे। धारा 124-ए और 153-ए के अन्तर्गत राजद्रोह के कई मुकदमे चलाए गए और इतने 'भयंकर' दण्ड दिए गए कि लॉर्ड मॉर्ले तक ने उनका दबे स्वर से विरोध किया।

अंग्रेज समाचारपत्रों ने तो विवेकशीलता के अपने उपदेश ताक पर रख ही दिए। इस समय वे कितना बौखला गए थे और कितनी विषभरी जबान से बोलते थे-इसका अन्दाजा नीचे दिए दो उद्धरणों से लग सकता है। 'एशियन' ने लिखा-''किंग्सफोर्ड को सुनहरा अवसर मिला है। वह चतुर खिलाड़ी हैं और दूर की सोच सकते हैं। हमें आशा है कि वह बहुतों का शिकार करेंगे और हमें यह सोचकर उनसे ईर्ष्या होती है। किसी अनजान भारतीय को अपने घर की ओर आते देखकर गोली मार देने का उन्हें पूरा अधिकार है और हमें आशा है कि वह शीघ्र कोट की ही जेब से बिना पिस्तौल निकाले ही सही निशाना लगा सकेगे।''

'पायनियर' तो उससे भी आगे निकल गया-''एक शहर या जिले में सभी आतंकवादियों को एक साथ गिरफ्तार करना चाहिए और उन्हें बता देना चाहिए कि आतंक की किसी घटना में मरे हर व्यक्ति के बदले में दस आतंकवादियों को गोली मार दी जाएगी। इससे आतंकवाद का अन्त हो जाएगा।''

जहां सरकार ने घृणा और द्वेष फैलाने वाले ऐसे आंग्ल-भारतीय पत्रों के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की, वहीं उसने राष्ट्रवादी पत्रों के सम्पादकों को कोई-न-कोई अभियोग लगाकर कड़े-से-कड़े दण्ड दिए। 'केसरी' में प्रकाशित 'देश का दुर्भाग्य' शीर्षक अपने लेख के कारण ही तिलक 24 जून, 1908 को गिरफ्तार किए गए थे। कुछ दिनों बाद 'ये उपाय स्थायी नहीं' शीर्षक एक और लेख के आधार पर उन पर एक और अभियोग लगाया गया, ताकि उन्हें दण्ड मिलना निश्चित हो जाए।

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    अनुक्रम

  1. अध्याय 1. आमुख
  2. अध्याय 2. प्रारम्भिक जीवन
  3. अध्याय 3. शिक्षा-शास्त्री
  4. अध्याय 4. सामाजिक बनाम राजनैतिक सुधार
  5. अध्याय 5 सात निर्णायक वर्ष
  6. अध्याय 6. राष्ट्रीय पर्व
  7. अध्याय 7. अकाल और प्लेग
  8. अध्याय ८. राजद्रोह के अपराधी
  9. अध्याय 9. ताई महाराज का मामला
  10. अध्याय 10. गतिशील नीति
  11. अध्याय 11. चार आधार स्तम्भ
  12. अध्याय 12. सूरत कांग्रेस में छूट
  13. अध्याय 13. काले पानी की सजा
  14. अध्याय 14. माण्डले में
  15. अध्याय 15. एकता की खोज
  16. अध्याय 16. स्वशासन (होम रूल) आन्दोलन
  17. अध्याय 17. ब्रिटेन यात्रा
  18. अध्याय 18. अन्तिम दिन
  19. अध्याय 19. व्यक्तित्व-दर्शन
  20. अध्याय 20 तिलक, गोखले और गांधी
  21. परिशिष्ट

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